দোঁহা

মধুশালা [প্রথম পর্ব]

 



হরিবংশ রাই বচ্চন
ভাষান্তর: গৌতম চক্রবর্তী



।१।
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।


।১।
কোমল যত আঙুর পিষে বানিয়ে এনে সুরা
দেবই আজ আপন করে পেয়ালা এই ভরা,
ছুঁইয়ে মুখ ফেরালে সুরা সবাই পাবে ভাগে,
আমার এই মধুশালায় আয়রে ছুটে আগে।


।२।
प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।


।২।
তাপিয়ে ধরা আনব সুরা পিপাসু তুই ওরে,
পেয়ালা হাতে সাকীর মতন নাচব ঘুরে ঘুরে
জীবনে সব মধুর তোকে করেছি দান কবে,
এবার তাই দিলাম সঁপে এমধুশালা ভবে।




।३।
प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।


।৩।
আমার তুই মদিরা ওরে পেয়ালা আমি তোর
নিজেকে তুই আমাতে ভরে পিপাসা দূর কর
যতই তোকে ঠকাই আমি, খুশি তো পান করে
হয়েছি আজ এমধুশালা পরস্পর তরে।


।४।
भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।


।৪।
আঙুর গাছে টানটি মেরে বানিয়ে নিয়ে মদ,
এসেছে কবি সাকীর মত পেয়ালা ভরে পদ,
যতই তুমি চুমুক মার ভরাই এ-পেয়ালা
পাঠক সবে করহে পান এ-বই মধুশালা।



।५।
मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।।


। ৫।
মধুর যত ভাবনা নিয়ে বানাই রোজ মদ্
পিপাসু মন ভরিয়ে রাখে মধুর মত পদ
কল্পনার নিজের হাতে কারণ পান খেলা
আমিই সুরা আমিই সাকী স্বয়ং মধুশালা।

।६।
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला,
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।


।৬।
মদের আশে বেরিয়ে খোঁজ পানশালাটা রোজ,
কোথায় গেল সে পানশালা মিলবে কী সে খোঁজ?
কেউবা বলে এপথ ধরো ওপথে নয় যাও,
মধুশালার খবর পেতে একটু হেঁটে নাও।




।७।
चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
'दूर अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।


।৭।
আসতে যেতে জীবন হায় কাটিয়ে দিলে কত
একেক জন দেখাল পথ বলল কাছে না তো
সাহস নেই এগিয়ে যেতে কিংবা পিছে চলা
করব কী যে বুঝিনা তাই দূরেই মধুশালা।


।८।
मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,
ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला।


।৮।
একনাগাড়ে বলেই চল মদিরা মদ মধু
হাতের মাঝে ভাবতে থাক পেয়ালা চারু শুধু
রূপসী এক সাকীর কথা ভেবেই হোক চলা
সুদূরে নয় কাছেই পাবি পথিক মধুশালা।


।९।
मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,
बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,
रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला।


।৯।
মদিরা চেখে দেখার আশা উঠলে হয়ে সুরা
আতুর ঠোঁট পেয়ালা ছোঁয় পরশে দিশেহারা
ভাবতে বসে সাকার হয়ে যখন ওঠে সাকী
মিলবে শুধু মধুশালাই নয়কো কিছু বাকি।



।१०।
सुन, कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला,
सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,
चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।


।১০।
কলকলিয়ে ছলছলিয়ে পেয়ালা যায় ভরে
বিলিয়ে মধু চলছে সাকী রিনঝিনিয়ে সুরে
এসেই গেছি, মধুশালায়, নয়কো বেশি দূর
পানের সাথে চলছে কথা সুবাসে ভরপুর।



।११।
जलतरंग बजता, जब चुंबन करता प्याले को प्याला,
वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला,
डाँट डपट मधुविक्रेता की ध्वनित पखावज करती है,
मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला।



।১১।
পেয়ালা শুধু পেয়ালা ছোঁয় মধুর সাতসুর
বাজছে বীণা চলছে সাকী ঝনক ভরপুর
পসারী যেই বকছে যেন বাজছে পাখোয়াজ
মধুর নাদে মাদক মধু মধুশালায় আজ।


।१२।
मेंहदी रंजित मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला,
अंगूरी अवगुंठन डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला,
पाग बैंजनी, जामा नीला डाट डटे पीनेवाले,
इन्द्रधनुष से होड़ लगाती आज रंगीली मधुशाला।



।১২।
মেহেন্দিতে কোমল হাতে পেয়ালা ভরা মধু
মদবরণ ওড়না গায়ে কনকচাঁপা বধূ
পানবিলাসী রঙিন বেশে ধমকে ওঠে কত
তবুও রং মধুশালায় রামধনুর মত।



।१३।
हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,
अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,
बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले,
पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला।


।১৩।
হাতের মাঝে ধরার আগে পেয়ালা করে ঢং
আঁধার নেমে আসার আগে জমেছে মদ রং
নেইতো সাকী পথিক তাই থাকছে বুঝি দূরে
পেয়োনা ভয় পানশালাতে মিলতে হবে সুরে।



।१४।
लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं,
पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशालाऐ।


।১৪।
পেয়ালা থেকে সুরাছলক আগুন মনে হয়
ফেনার মত মদিরা এই মনের ক্ষত নয়
নেশার মত বেদন ভরা অতীত কথা সাকী
মনস্তাপে যেজন হাসে মধুশালায় ডাকি।



।१५।
जगती की शीतल हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला,
जगती के ठंडे प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला,
ज्वाल सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,
जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला।


।১৫।
ভুবন জুড়ে শীতল মদ, আমার তাপময়
হিমপেয়ালা সকল হাতে, আমার কাছে নয়
পেয়ালা আর সুরার তাপে কবিতা হুতাশন
ভয় না পেয়ে মধুশালায় আয় রে ছুটে মন।


।१६।
बहती हाला देखी, देखो लपट उठाती अब हाला,
देखो प्याला अब छूते ही होंठ जला देनेवाला,
'होंठ नहीं, सब देह दहे, पर पीने को दो बूंद मिले'
ऐसे मधु के दीवानों को आज बुलाती मधुशाला।


।১৬।
মদের ধারা বইছে যেন লকলকানো শিষ,
পেয়ালা-মুখ হলেই ঠোঁট পুড়বে দেখে নিস,
পুড়ুক ঠোঁট জ্বলুক দেহ দু'ফোঁটা যেন পাই
মধুর টান এমন হলে মধুশালায় চাই।




।१७।
धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।


।১৭।
বুকের মাঝে দহন নিয়ে পুড়িয়ে দিয়ে বই,
গিরজা মঠ মসজিদও আস্ত রাখে কই,
গুরুকুলের ফাঁদ কাটিয়ে কেমনতর খেলা,
মাতাল তুই এখানে আয় ডাকছে মধুশালা।




।१८।
लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,
हर्ष-विकंपित कर से जिसने, हा, न छुआ मधु का प्याला,
हाथ पकड़ लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा,
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला


।১৮।
লোলুপ দুই ঠোঁটের চুমু এড়িয়ে গেলি মদে
মুখর হাসে কোথায় ছুঁলি মধুর পেয়ালাকে
আকর্ষণে লাজুক সাকী কখন কাছে এল
জীবন তোর মধুশালায় নীরস রয়ে গেল।




।१९।
बने पुजारी प्रेमी साकी, गंगाजल पावन हाला,
रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला'
'और लिये जा, और पीये जा', इसी मंत्र का जाप करे'
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला।


।১৯।
পূজারী হোক দয়িত সাকী, গঙ্গাজল সুরা,
মালিকা সব পেয়ালা যেন মধুর যতিহারা
বল্গাহীন পানের জপে কাটালে সারাবেলা
আমিই হবো দেবতা শিব দেউল মধুশালা।




।२०।
बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,
बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,
लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,
रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला।


।২০।
দেউলে কই ঘন্টা রব, কোথায় দেবমালা
মুয়াজ্জিন আপন ঘরে মসজিদেতে তালা
লুঠের ধনে নরপতির কেল্লা ভেঙে ধুলো,
আগলহীন মধুশালায় রসিক থাকে ভালো।



।२१।
बड़े बड़े परिवार मिटें यों, एक न हो रोनेवाला,
हो जाएँ सुनसान महल वे, जहाँ थिरकतीं सुरबाला,
राज्य उलट जाएँ, भूपों की भाग्य सुलक्ष्मी सो जाए,
जमे रहेंगे पीनेवाले, जगा करेगी मधुशाला।


।২১।
পরিবারের মরণকালে কাঁদেনা কেউ হায়,
নিঝুম যত মহলে সব নূপুর থেমে যায়,
রাজ্যপাট উলটে গেলে, ভুবনডাঙা ঘুমে
মধুশালাই জাগিয়ে দেবে সুরাপানের ধুমে।


।२२।
सब मिट जाएँ, बना रहेगा सुन्दर साकी, यम काला,
सूखें सब रस, बने रहेंगे, किन्तु, हलाहल औ' हाला,
धूमधाम औ' चहल पहल के स्थान सभी सुनसान बनें,
जगा करेगा अविरत मरघट, जगा करेगी मधुशाला।


।২২।
শেষের দিনে থাকবে যম, মনোহরণ সাকী
গরল আর কারণ রস থাকবে পড়ে বাকি
জাঁকজমক কোলাহলের সাঙ্গ হবে পালা
বিরামহীন জাগে শ্মশান সংগে মধুশালা।



।२३।
भुरा सदा कहलायेगा जग में बाँका, मदचंचल प्याला,
छैल छबीला, रसिया साकी, अलबेला पीनेवाला,
पटे कहाँ से, मधु औ' जग की जोड़ी ठीक नहीं,
जग जर्जर प्रतिदन, प्रतिक्षण, पर नित्य नवेली मधुशाला।


।২৩।
সাহসীরাই ভুবন সেরা, পেয়ালা চঞ্চল
পটের বাবু, রসিক সাকী, উদাস উচ্ছল
ভুবন আর মধুর জুড়ি কেমন করে পটে
দু:খ থেকে বাঁচতে সবে মধুশালায় ছোটে।


।२४।
बिना पिये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला,
पी लेने पर तो उसके मुह पर पड़ जाएगा ताला,
दास द्रोहियों दोनों में है जीत सुरा की, प्याले की,
विश्वविजयिनी बनकर जग में आई मेरी मधुशाला।


।২৪।
বিনাপানেই মধুশালার কুৎসা করে যেই
পানের পরে লাগাম মুখে বলার কিছু নেই
বেইমান বা নফর হলে পানেই মেটে জ্বালা
ভুবনজয়ী রূপেই আসে আমার মধুশালা।



।२५।
हरा भरा रहता मदिरालय, जग पर पड़ जाए पाला,
वहाँ मुहर्रम का तम छाए, यहाँ होलिका की ज्वाला,
स्वर्ग लोक से सीधी उतरी वसुधा पर, दुख क्या जाने,
पढ़े मर्सिया दुनिया सारी, ईद मनाती मधुशाला


।২৫।
পানশালা তো চিরসবুজ, ভুবন হিমাধার,
কোথাও ছায়া মহরমের, কিংবা হোলিকার,
স্বর্গ থেকে সটান ধরা, বিষাদ রাখে খোঁজ?
দুনিয়া কাঁদে, মধুশালায় খুশির ঈদ রোজ।


।२६।
एक बरस में, एक बार ही जगती होली की ज्वाला,
एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला,
दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो,
दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला।


।২৬।
প্রতি বছর একটি বার হোলির শিখা জাগে,
বাজিতে আর দীপমালায় আলোর সংরাগে,
মধুশালায় যখন খুশি আসলে কেউ নিজে
হোলির দিন দীপালি রাত পাবেই পাবে খুঁজে।



।२७।
नहीं जानता कौन, मनुज आया बनकर पीनेवाला,
कौन अपिरिचत उस साकी से, जिसने दूध पिला पाला,
जीवन पाकर मानव पीकर मस्त रहे, इस कारण ही,
जग में आकर सबसे पहले पाई उसने मधुशाला।



।২৭।
জানে না কেউ মানুষ কেন মাতাল হয়ে আসে,
কোথায় কোন অচিন সাকী বুকের দুধে পোষে
জীবন পেয়ে পানের সুখে মজায় কেটে গেল
এই ভুবনে এসেই আগে মধুশালাই পেল।


।२८।
बनी रहें अंगूर लताएँ जिनसे मिलती है हाला,
बनी रहे वह मिटटी जिससे बनता है मधु का प्याला,
बनी रहे वह मदिर पिपासा तृप्त न जो होना जाने,
बनें रहें ये पीने वाले, बनी रहे यह मधुशाला



।২৮।
থাকুক সেই আঙুরলতা মদিরা ভান্ডার
উৎসমাটি থাকুক বেঁচে পেয়ালা গড়বার
থাকুক বেঁচে পিপাসা সেই আকুল সারাবেলা
কাটাক সুখে পানবিলাসী, থাকুক মধুশালা।


।२९।
सकुशल समझो मुझको, सकुशल रहती यदि साकीबाला,
मंगल और अमंगल समझे मस्ती में क्या मतवाला,
मित्रों, मेरी क्षेम न पूछो आकर, पर मधुशाला की,
कहा करो 'जय राम' न मिलकर, कहा करो 'जय मधुशाला'


।২৯।
কুশল সাকী থাকলে আমি ভালই থাকি নিজে
হিতাহিতের হারিয়ে বোধ মাতাল মজা খোঁজে
দেখতে পেলে আজকে ডাক 'জয়তু রাম' নয়
সবাই মিলে শুধুই বল মধুশালার জয়।


।३०।
सूर्य बने मधु का विक्रेता, सिंधु बने घट, जल, हाला,
बादल बन-बन आए साकी, भूमि बने मधु का प्याला,
झड़ी लगाकर बरसे मदिरा रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम कर,
बेलि, विटप, तृण बन मैं पीऊँ, वर्षा ऋतु हो मधुशाला



।৩০।
তপন করে মধুর ফেরি, সাগর মদজল,
বাদল হয়ে নামল সাকী মধুর ধরাতল,
রিমঝিমিয়ে পড়ছে মদ, মাতন সারাবেলা,
ফুলের মত করেছি পান বরষা মধুশালা।



।३१।
तारक मणियों से सज्जित नभ बन जाए मधु का प्याला,
सीधा करके भर दी जाए उसमें सागरजल हाला,
मत्त समीरण साकी बनकर अधरों पर छलका जाए,
फैले हों जो सागर तट से विश्व बने यह मधुशाला



।৩১।
আকাশ হলে তারকাময় পেয়ালা মদিরার
উলটে দিয়ে সাগরজলে ভরিয়ে নিরাকার
মাতাল বায় সাকীর মত অধরে ছলকালে
মধুশালাই দুনিয়া হবে সূচনা উপকূলে।


।३२।
अधरों पर हो कोई भी रस जिहवा पर लगती हाला,
भाजन हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला,
हर सूरत साकी की सूरत में परिवर्तित हो जाती,
आँखों के आगे हो कुछ भी, आँखों में है मधुशाला




।৩২।
অধরপথে পথিক রস রসনাভূমে মদ্
করতলের আহার যেন পেয়ালাভরা পদ্
যাকেই দেখি সাকীর মত বদলে যায় কেন
নয়নভরে যা কিছু দেখি মধুশালাই যেন।



।३३।
पौधे आज बने हैं साकी ले ले फूलों का प्याला,
भरी हुई है जिसके अंदर पिरमल-मधु-सुरिभत हाला,
माँग माँगकर भ्रमरों के दल रस की मदिरा पीते हैं,
झूम झपक मद-झंपित होते, उपवन क्या है मधुशाला!


।৩৩।
সাকীর মত অটবী আজ ফুলপেয়ালা ধরো
ভিতরে যার কেবল মধু, সুবাস বুকে ভরো,
অলির দল গুনগুনিয়ে রসের আশে ফুলে,
মধুশালার ফুলবাগানে মধুর তালে দুলে।


।३४।
प्रति रसाल तरू साकी सा है, प्रति मंजरिका है प्याला,
छलक रही है जिसके बाहर मादक सौरभ की हाला,
छक जिसको मतवाली कोयल कूक रही डाली डाली
हर मधुऋतु में अमराई में जग उठती है मधुशाला।।


।৩৪।
আমের গাছ সাকীর মত মুকুল রসাধার,
মদের বাস ছড়িয়ে পড়ে উছলে বারবার,
মাতাল হয়ে কোয়েল করে আমের বনে খোঁজ
ফাগুনমাসে আমের বনে মধুশালাই রোজ।।



।३५।
मंद झकोरों के प्यालों में मधुऋतु सौरभ की हाला
भर भरकर है अनिल पिलाता बनकर मधु-मद-मतवाला,
हरे हरे नव पल्लव, तरूगण, नूतन डालें, वल्लरियाँ,
छक छक, झुक झुक झूम रही हैं, मधुबन में है मधुशाला



।৩৫।
অলস বায়ে পেয়ালা জুড়ে মধুঋতুর বাস
মদিরা মধু মাতাল হয়ে আকাশ নেয় শ্বাস
সবুজ পাতা নতুন পাতা নবীন ডালপালা
নুইয়ে শাখা এমধুবনে ডাকছে মধুশালা।।


।३६।
साकी बन आती है प्रातः जब अरुणा ऊषा बाला,
तारक-मणि-मंडित चादर दे मोल धरा लेती हाला,
अगणित कर-किरणों से जिसको पी, खग पागल हो गाते,
प्रति प्रभात में पूर्ण प्रकृति में मुखिरत होती मधुशाला।



।৩৬।
সকাল আসে সাকীর সাজে আলতা পরা পায়
তারকাময় ওড়না ছেড়ে মদিরা ওকে চায়
আলোকধারা করেছে পান মাতাল তাই পাখি
সকালে রোজ এমধুশালায় করছে ডাকাডাকি।।



।३७।
उतर नशा जब उसका जाता, आती है संध्या बाला,
बड़ी पुरानी, बड़ी नशीली नित्य ढला जाती हाला,
जीवन के संताप शोक सब इसको पीकर मिट जाते
सुरा-सुप्त होते मद-लोभी जागृत रहती मधुशाला।।


।৩৭।
নেশার পারা নামলে নীচে আঁধারবালা আসে
আদিম সেই নেশার ঘোরে রাখতে রসে বশে
জীবন জুড়ে যাতনা সব পান বিলাসে ভাগে
মদের লোভে মাতাল তাই মধুশালায় জাগে।



।३८।
अंधकार है मधुविक्रेता, सुन्दर साकी शशिबाला
किरण किरण में जो छलकाती जाम जुम्हाई का हाला,
पीकर जिसको चेतनता खो लेने लगते हैं झपकी
तारकदल से पीनेवाले, रात नहीं है, मधुशाला।।


।৩৮।
আঁধার করে মধুর ফেরি, রূপসী সাকী বিধু
রজনীকরে ছলকে ওঠে ঘুমপাড়ানি মধু,
মধুর পানে চেতন যেতে পলক শুধু ফেলা
তারকা দল, রসিক রাতে, গগন মধুশালা।।



।३९।
किसी ओर मैं आँखें फेरूँ, दिखलाई देती हाला
किसी ओर मैं आँखें फेरूँ, दिखलाई देता प्याला,
किसी ओर मैं देखूं, मुझको दिखलाई देता साकी
किसी ओर देखूं, दिखलाई पड़ती मुझको मधुशाला।।


।৩৯।
যেদিক দেখি চোখের পটে ছলকে ওঠে মদ্
ফেরালে চোখ এগিয়ে আসে পেয়ালাভরা পদ্
নজর গেলে অপর দিকে সামনে মধুবালা
দিগন্তরে খোয়ারি দেখি এইতো মধুশালা।।



।४०।
साकी बन मुरली आई साथ लिए कर में प्याला,
जिनमें वह छलकाती लाई अधर-सुधा-रस की हाला,
योगिराज कर संगत उसकी नटवर नागर कहलाए,
देखो कैसों-कैसों को है नाच नचाती मधुशाला।।


।৪০।
কানাই আসে সাকীর মত পানপেয়ালা ভরে
মদিরা দেখ উঠছে নেচে মনমাতাল করে
বাসুদেবের নাগর সেজে সংগে নাচে ভোলা
কেমন নাচ নাচায় দেখ ভবের মধুশালা।।



।४१।
वादक बन मधु का विक्रेता लाया सुर-सुमधुर-हाला,
रागिनियाँ बन साकी आई भरकर तारों का प्याला,
विक्रेता के संकेतों पर दौड़ लयों, आलापों में,
पान कराती श्रोतागण को, झंकृत वीणा मधुशाला।।


।৪১।
বাদকবেশে মধুপসারি আনলো সুরে সুরা
রাগিনীরূপ স্বয়ং সাকী পেয়ালা তারাভরা
ইশারা করে পসারি যেই আলাপ লয় তান
বীণার সুরে মধুশালায় করছে সব পান।।



।४२।
चित्रकार बन साकी आता लेकर तूली का प्याला,
जिसमें भरकर पान कराता वह बहु रस-रंगी हाला,
मन के चित्र जिसे पी-पीकर रंग-बिरंगे हो जाते,
चित्रपटी पर नाच रही है एक मनोहर मधुशाला।।


।৪২।
শিল্পী হয়ে হাজির সাকী পেয়ালাভরে তুলি
পেয়ালা ভরে পান করাতে রঙিন মদাবলি
পানের পরে কত না রং মনের মাঝে ভাসে
মধুশালাই নাচছে যেন রঙিন ক্যানভাসে।




।४३।
घन श्यामल अंगूर लता से खिंच खिंच यह आती हाला,
अरूण-कमल-कोमल कलियों की प्याली, फूलों का प्याला,
लोल हिलोरें साकी बन बन माणिक मधु से भर जातीं,
हंस मत्त होते पी पीकर मानसरोवर मधुशाला।।


।৪৩।
সবুজরঙা আঙুরলতা টানলে আসে সুরা
লালকমল কোমল কলি পেয়ালা ফুলে ভরা
সাকীর মত তিয়াস খুঁজে ভরায় মধু জানে
মধুশালায় মনসায়রে হংস মাতে পানে।।



।४४।
हिम श्रेणी अंगूर लता-सी फैली, हिम जल है हाला,
चंचल नदियाँ साकी बनकर, भरकर लहरों का प्याला,
कोमल कूर-करों में अपने छलकाती निशिदिन चलतीं,
पीकर खेत खड़े लहराते, भारत पावन मधुशाला।।


।৪৪।
অচলমালা আঙুরলতা, হিমেল ধারা সুরা
নদীরা সব চপল সাকী, বিলোয় জল ধারা
কোমল ঢেউ ছলকে গাঙে কাটছে সারাবেলা
পানের শেষে সবুজ খেতে দুলছে মধুশালা।।




।४५।
धीर सुतों के हृदय रक्त की आज बना रक्तिम हाला,
वीर सुतों के वर शीशों का हाथों में लेकर प्याला,
अति उदार दानी साकी है आज बनी भारतमाता,
स्वतंत्रता है तृषित कालिका बलिवेदी है मधुशाला।।


।৪৫।
সুধীরসূত হিয়া-রুধির আজকে হল সুরা
অমিততেজা তনয় যত পেয়ালা হাতে ধরা
ভারতমাতা উদার সাকী বিলোয় সারা বেলা
স্বরাট হলে তৃষিত কালী ঘাতকী মধুশালা।।



।४६।
दुतकारा मस्जिद ने मुझको कहकर है पीनेवाला,
ठुकराया ठाकुरद्वारे ने देख हथेली पर प्याला,
कहाँ ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को?
शरणस्थल बनकर न मुझे यदि अपना लेती मधुशाला।।


।৪৬।
মাতাল বলে মসজিদেতে পেলাম রোজ দুখ
পেয়ালা দেখে ঠাকুরবাড়ি ফিরিয়ে রাখে মুখ
অভাগা এই কাফের বলো আলয় কোথা পেতো
আপন করে এমধুশালা না যদি কাছে নিতো।।



।४७।
पथिक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हाला,
सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला,
मुझे ठहरने का, हे मित्रों, कष्ट नहीं कुछ भी होता,
मिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला।।


।৪৭।
পথিক হয়ে বেড়াই ঘুরে মদিরা সারাদেশে
হাজির সাকী পেয়ালাভরা মদির সোমরসে
থামতে চাই বলছি সখা নেইকো কোন দুখ
না মসজিদ ঠাকুরবাড়ি মধুশালাই সুখ।।


।४८।
सजें न मस्जिद और नमाज़ी कहता है अल्लाताला,
सजधजकर, पर, साकी आता, बन ठनकर, पीनेवाला,
शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से
चिर विधवा है मस्जिद तेरी, सदा सुहागिन मधुशाला।।



।৪৮।
নিরাভরণ এমসজিদ খোদাকে দেয় ডাক
মধুশালায় মদপিপাসু সাকীকে চায় চাক
মসজিদ ও মধুশালায় মেলানো নয় খেলা
মসজিদের বিধবা সাজ আদুরী মধুশালা।।



।४९।
बजी नफ़ीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला,
गाज गिरी, पर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीनेवाला,
शेख, बुरा मत मानो इसको, साफ़ कहूँ तो मस्जिद को
अभी युगों तक सिखलाएगी ध्यान लगाना मधुशाला!।।


।৪৯।
সানাই বাজে নামাজ ভুলে বেপথু হয় হিয়া
পড়ছে বাজ রসিক তবু মেতেই সুরা নিয়া
মনন কী তা মসজিদের বুঝতে বহু দেরি
শিখিয়ে দেয় মধুশালাই এসব কারিকুরি।।


।५०।
मुसलमान औ' हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!


। ৫০।
হিন্দু হোক বা মুসলিম পেয়ালা নয় নানা
মদিরা হোক বা মধুশালা অসম নয় জানা
মসজিদ বা ঠাকুরবাড়ি আলাদা করে পথ
মিলছে কিন্তু মধুশালায় তরবেতর মত।।




।५१।
कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला,
बैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवाला,
एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकले,
देखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला!



। ৫১।
পন্ডিত বা নামাজি সব ঘোরায় জপমালা
রাখতে দূরে যেমন খুশি মদের মোহ মেলা
দেখতে চাই আসলে ওরা মধুশালার ধারে
চিদবৃত্তি কেমন করে সামলে নিতে পারে।।




।५२।
और रसों में स्वाद तभी तक, दूर जभी तक है हाला,
इतरा लें सब पात्र न जब तक, आगे आता है प्याला,
कर लें पूजा शेख, पुजारी तब तक मस्जिद मन्दिर में
घूँघट का पट खोल न जब तक झाँक रही है मधुशाला।।



। ৫২।
যখন মদ অনেক দূরে রসের মজা ভারি
অহংকারে পাত্র ভরো পেয়ালা এলে পাড়ি
পন্ডিত বা নামাজি সব সাধন সেরে নাও
পেলেই দেখা মধুশালার আব্রু খুলে দাও।।



।५३।
आज करे परहेज़ जगत, पर, कल पीनी होगी हाला,
आज करे इन्कार जगत पर कल पीना होगा प्याला,
होने दो पैदा मद का महमूद जगत में कोई, फिर
जहाँ अभी हैं मन्दिर मस्जिद वहाँ बनेगी मधुशाला।।


। ৫৩।
নাহয় আজ সরাবে মদ কালকে হবে পান
উঠবে হাতে পেয়ালা সব সরিয়ে অভিমান
সুরারসিক আসবে ভবে গড়বে মধুশালা
সরিয়ে দেবে মসজিদ বা মন্দিরের চালা।।


।५४।
यज्ञ अग्नि सी धधक रही है मधु की भटठी की ज्वाला,
ऋषि सा ध्यान लगा बैठा है हर मदिरा पीने वाला,
मुनि कन्याओं सी मधुघट ले फिरतीं साकीबालाएँ,
किसी तपोवन से क्या कम है मेरी पावन मधुशाला।।


। ৫৪।
হোমানলের মতই আগে জ্বলছে ভাটিখানা
ধ্যানে মগন পানবিলাসী ঋষির মত নানা
মদির সাকী পেয়ালা হাতে মধুর ঋষিবালা
তপোবনের চেয়েও পূত এগিয়ে মধুশালা।।



।५५।
सोम सुरा पुरखे पीते थे, हम कहते उसको हाला,
द्रोणकलश जिसको कहते थे, आज वही मधुघट आला,
वेदिवहित यह रस्म न छोड़ो वेदों के ठेकेदारों,
युग युग से है पुजती आई नई नहीं है मधुशाला।।


।৫৫।
সোমরসই মদিরা হয়ে জুড়ায় দেহতট
দ্রোণ নামে কলস আজ কাম্য মধুঘট
বেদবিহিত এই আচার চালাও ঠিকেদার
মধুশালায় চলুক পুজো চিরন্তনতার।।


।५६।
वही वारूणी जो थी सागर मथकर निकली अब हाला,
रंभा की संतान जगत में कहलाती 'साकीबाला',
देव अदेव जिसे ले आए, संत महंत मिटा देंगे!
किसमें कितना दम खम, इसको खूब समझती मधुशाला।।


।৫৬।
বারুণী সেই দরিয়া থেকে মথিয়া নেয় সুরা
রম্ভা সূতা সাকীর বেশে আবেশে আস্কারা
সাধক সবে বিনাশ করে আসলে সুরাসুর
মধুশালার অজানা নয় কতটা কার দৌড়।।




।५७।
कभी न सुन पड़ता, 'इसने, हा, छू दी मेरी हाला',
कभी न कोई कहता, 'उसने जूठा कर डाला प्याला',
सभी जाति के लोग यहाँ पर साथ बैठकर पीते हैं,
सौ सुधारकों का करती है काम अकेले मधुशाला।।


।৫৭।
শোনেনি কেউ লাগলে ছোঁয়া কলুষ হবে সুরা
পেয়ালা নয় আবিল আদৌ পড়লে ঠোঁটে ধরা
জাতের কথা ভাবেনা কেউ মধুশালায় বসে
শোধন করে কেমন করে দেখতে হবে এসে।।



।५८।
श्रम, संकट, संताप, सभी तुम भूला करते पी हाला,
सबक बड़ा तुम सीख चुके यदि सीखा रहना मतवाला,
व्यर्थ बने जाते हो हिरजन, तुम तो मधुजन ही अच्छे,
ठुकराते हैं मंदिरवाले, पलक बिछाती मधुशाला।।


। ৫৮।
মদিরাপান ভুলিয়ে দেয় সংকট বা শোক
সুরাপানের বিভোরতায় বিরাট শেখা হোক
হরির লোক নাই বা হলে তুমি হে মধুজন
মধুশালাই দেখবে ফিরে ফেরাক হরিজন।।




।५९।
एक तरह से सबका स्वागत करती है साकीबाला,
अज्ञ विज्ञ में है क्या अंतर हो जाने पर मतवाला,
रंक राव में भेद हुआ है कभी नहीं मदिरालय में,
साम्यवाद की प्रथम प्रचारक है यह मेरी मधुशाला।।


। ৫৯।
‌সাকীরা সব একসুরেতে ডাকছে মেহমান
মাতাল হলে সমান সব মূর্খ বিদ্বান
গরীব ধনী আলাদা নয় পানশালায় বসে
সাম্যবাদ শিখতে হবে মধুশালায় এসে।।




।६०।
बार बार मैंने आगे बढ़ आज नहीं माँगी हाला,
समझ न लेना इससे मुझको साधारण पीने वाला,
हो तो लेने दो ऐ साकी दूर प्रथम संकोचों को,
मेरे ही स्वर से फिर सारी गूँज उठेगी मधुशाला।।


। ৬০।
‌বারংবার এগিয়ে গিয়ে চাইনি আজ সুরা
সামান্য নই সুরারসিক কারণ মাতোয়ারা
প্রথম বলে একটু পরে লজ্জা যাবে দূরে
গমগমিয়ে উঠবে গলা আমার মধুপুরে।।


।६१।
कल? कल पर विश्वास किया कब करता है पीनेवाला
हो सकते कल कर जड़ जिनसे फिर फिर आज उठा प्याला,
आज हाथ में था, वह खोया, कल का कौन भरोसा है,
कल की हो न मुझे मधुशाला काल कुटिल की मधुशाला।।




। ৬১।
‌কালের কথা সুরা রসিক মোটেও বুঝি ভাবে
বিরাম হলে আগামীকাল আজকে পান হবে
হারায় যদি হাতে যা আজ ভরসা নেই কালে
আজকে আমি মধুশালায় কালকে যাবে খলে।।


।६२।
आज मिला अवसर, तब फिर क्यों मैं न छकूँ जी-भर हाला
आज मिला मौका, तब फिर क्यों ढाल न लूँ जी-भर प्याला,
छेड़छाड़ अपने साकी से आज न क्यों जी-भर कर लूँ,
एक बार ही तो मिलनी है जीवन की यह मधुशाला।।



। ৬২।
‌সুযোগ আজ কারণসুধা করবো উপভোগ
সময় বুঝে পেয়ালা-সুরা করবো সংযোগ
সাকীর সাথে আশ মিটিয়ে হবেই ছলাকলা
একবারই এই জীবনে মিলবে মধুশালা।।



।६३।
आज सजीव बना लो, प्रेयसी, अपने अधरों का प्याला,
भर लो, भर लो, भर लो इसमें, यौवन मधुरस की हाला,
और लगा मेरे होठों से भूल हटाना तुम जाओ,
अथक बनू मैं पीनेवाला, खुले प्रणय की मधुशाला।।



। ৬৩।
সজীব করে নাওগো সখী ওষ্ঠে সুরাধার
বয়স কালে মদির রসে ভরিয়ে বার বার
ভুলটা মুছে ওষ্ঠাধরে যাওগো হলে বেলা
সুরামগন পরানখোলা পিরিতি মধুশালা।।


।६४।
सुमुखी तुम्हारा, सुन्दर मुख ही, मुझको कन्चन का प्याला
छलक रही है जिसमें माणिक रूप मधुर मादक हाला,
मैं ही साकी बनता, मैं ही पीने वाला बनता हूँ
जहाँ कहीं मिल बैठे हम तुम़ वहीं गयी हो मधुशाला।।



। ৬৪।
চাঁদবদনী তোমার মুখ সোনার কাপ হেন
মাণিক রূপ মধুর মদ ছলকে ওঠে যেন
সাকী এবং মাতাল হয়ে করছি বসে খেলা
মিলন যেথা দুইজনেতে সেথায় মধুশালা।।


।६५।
दो दिन ही मधु मुझे पिलाकर ऊब उठी साकीबाला,
भरकर अब खिसका देती है वह मेरे आगे प्याला,
नाज़, अदा, अंदाजों से अब, हाय पिलाना दूर हुआ,
अब तो कर देती है केवल फ़र्ज़ - अदाई मधुशाला।।



। ৬৫।
দু'দিন মোটে করিয়ে পান সাকীর অভিমান
পেয়ালা ভরে ঠেলছে শুধু করলে কর পান
ভাবভঙ্গি কায়দা হায় কবেই গেছে দূর
দায়মেটানো মধুশালায় অন্য আজ সুর।


।६६।
छोटे-से जीवन में कितना प्यार करुँ, पी लूँ हाला,
आने के ही साथ जगत में कहलाया 'जानेवाला',
स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी,
बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन-मधुशाला।।६६।



। ৬৬।
জীবন ছোট করেছি পান বাসব ভাল কত
এসেছি যেই সবাই বলে হতেই হবে গত
আসুন বলে বিদায় দিতে দেখছি নিশিদিন
যেইনা খোলা মধুশালার জীবন গতিহীন।।



।६७।
क्या पीना, निर्द्वन्द न जब तक ढाला प्यालों पर प्याला,
क्या जीना, निश्चिंत न जब तक साथ रहे साकीबाला,
खोने का भय, हाय, लगा है पाने के सुख के पीछे,
मिलने का आनंद न देती मिलकर के भी मधुशाला।।


। ৬৭।
পানের আগে দ্বন্দ্ব চলে ঢালব নাকি সুরা
কেমন করে বাঁচব বল জীবন সাকীহারা
হারাই বুঝি ভয়টা এই লুকিয়ে থাকে পিছে
মধুশালায় মিলন সুখ সতত লাগে মিছে।



।६८।
मुझे पिलाने को लाए हो इतनी थोड़ी-सी हाला!
मुझे दिखाने को लाए हो एक यही छिछला प्याला!
इतनी पी जीने से अच्छा सागर की ले प्यास मरुँ,
सिंधु-तृषा दी किसने रचकर बिंदु-बराबर मधुशाला।।


। ৬৮।
একটু এই এনেছ মদ করাবে তাই পান
পেয়ালা সেও বড়ই ছোট দেখলে অভিমান
মরুর মত সাগর-আশা জীবন ঝালাপালা
সাগরসম তিয়াস বুকে বিন্দু মধুশালা।।


।६९।
क्या कहता है, रह न गई अब तेरे भाजन में हाला,
क्या कहता है, अब न चलेगी मादक प्यालों की माला,
थोड़ी पीकर प्यास बढ़ी तो शेष नहीं कुछ पीने को,
प्यास बुझाने को बुलवाकर प्यास बढ़ाती मधुशाला।।


। ৬৯।
বলছে লোকে জীবন তব কেবল সুরাময়
থাকুক দূরে মাদকসেবা পেয়ালা আর নয়
একটু থেকে অনেক বাড়ে পানপিপাসা এই
মেটাবে কোন কারণবালা মধুশালায় নেই।।



।७०।
लिखी भाग्य में जितनी बस उतनी ही पाएगा हाला,
लिखा भाग्य में जैसा बस वैसा ही पाएगा प्याला,
लाख पटक तू हाथ पाँव, पर इससे कब कुछ होने का,
लिखी भाग्य में जो तेरे बस वही मिलेगी मधुशाला।।


। ৭০।
যেমন আছে বরাতে এই মিলবে সুরা তত
এই জীবনে পেয়ালা সেও ললাটলেখা যত
যতই তুমি হাতপা ছোঁড় লাভ কি কিছু হবে
কপালগুণে প্রাপ্য যা তা মধুশালায় পাবে।।




।७१।
कर ले, कर ले कंजूसी तू मुझको देने में हाला,
दे ले, दे ले तू मुझको बस यह टूटा फूटा प्याला,
मैं तो सब्र इसी पर करता, तू पीछे पछताएगी,
जब न रहूँगा मैं, तब मेरी याद करेगी मधुशाला।।


। ৭১।
নে করে নে কিপটেমিটা বিলোতে মদ গিয়ে
চালিয়ে নেব যেমন দিবি পেয়ালা ফাটা নিয়ে
দেখব বসে কবে যে তুই করবি হাহাকার
মধুশালায় পড়বে মনে আমাকে বার বার।।



।७२।
ध्यान मान का, अपमानों का छोड़ दिया जब पी हाला,
गौरव भूला, आया कर में जब से मिट्टी का प्याला,
साकी की अंदाज़ भरी झिड़की में क्या अपमान धरा,
दुनिया भर की ठोकर खाकर पाई मैंने मधुशाला।।


। ৭২।
পান করেছি ভাবিনি আর মান বা অপমান
পেয়ালা হাতে গরিমা সব হয়েছে অবসান
সাকীর কাছে বকুনি আজ কন্ঠে হল মালা
সারা ভুবন ঠোকর সয়ে পেলাম মধুশালা।।



।७३।
क्षीण, क्षुद्र, क्षणभंगुर, दुर्बल मानव मिटटी का प्याला,
भरी हुई है जिसके अंदर कटु-मधु जीवन की हाला,
मृत्यु बनी है निर्दय साकी अपने शत-शत कर फैला,
काल प्रबल है पीनेवाला, संसृति है यह मधुशाला।।


। ৭৩।
মানুষ সব রোগাপাতলা মাটির পানাধার
ভেতরে ভরা জীবন সুধা টকমিষ্টি তার
মরণ যেন নিঠুর সাকী খেলছে শতমুখে
কালের গতি তীব্র অতি মধুশালার বাঁকে।



।७४।
प्याले सा गढ़ हमें किसी ने भर दी जीवन की हाला,
नशा न भाया, ढाला हमने ले लेकर मधु का प्याला,
जब जीवन का दर्द उभरता उसे दबाते प्याले से,
जगती के पहले साकी से जूझ रही है मधुशाला।।


। ৭৪।
জীবন যেন পেয়ালাগড় ভরতি মদে শুধু
চাইনি নেশা ঢেলেছিলাম পেয়ালা করে মধু
সারা জীবন যাতনা ভার মিটিয়ে এপেয়ালা
আবহমান সাকীর সাথে লড়ছে মধুশালা।।



।७५।
अपने अंगूरों से तन में हमने भर ली है हाला,
क्या कहते हो, शेख, नरक में हमें तपाएगी ज्वाला,
तब तो मदिरा खूब खिंचेगी और पिएगा भी कोई,
हमें नमक की ज्वाला में भी दीख पड़ेगी मधुशाला।।


। ৭৫।
আঙুর দিয়ে বানানো মদ শরীরে এই ভরে
নরক গিয়ে বুঝলে শেখ ফুটলে বেশ করে
মজবে মন তবেই কেউ করবে পান লীলা
যাতনা থাক নুনের যত দেখবে মধুশালা।।



।७६।
यम आएगा लेने जब, तब खूब चलूँगा पी हाला,
पीड़ा, संकट, कष्ट नरक के क्या समझेगा मतवाला,
क्रूर, कठोर, कुटिल, कुविचारी, अन्यायी यमराजों के
डंडों की जब मार पड़ेगी, आड़ करेगी मधुशाला।।


। ৭৬।
যম যখন আসবে পান করব বেশ করে
মাতাল হলে নরক পীড়া কষ্ট বোঝেনারে
শমন বড় কুটিল অতি করেন অবিচার
মধুশালার শরণ নেবে পড়লে পিঠে মার।।



।७७।
यदि इन अधरों से दो बातें प्रेम भरी करती हाला,
यदि इन खाली हाथों का जी पल भर बहलाता प्याला,
हानि बता, जग, तेरी क्या है, व्यर्थ मुझे बदनाम न कर,
मेरे टूटे दिल का है बस एक खिलौना मधुशाला।।७७।


।৭৭।
ঠোঁটের সাথে মধুর কথা বলত যদি সুরা
ভালবাসায় লহমা এক পেয়ালা মুঠোভরা
ভুবন তোর কিসের ক্ষতি অযথা অবহেলা
আমার এই ভাঙা মনের খেলনা মধুশালা।।



।७८।
याद न आए दुखमय जीवन इससे पी लेता हाला,
जग चिंताओं से रहने को मुक्त, उठा लेता प्याला,
शौक, साध के और स्वाद के हेतु पिया जग करता है,
पर मै वह रोगी हूँ जिसकी एक दवा है मधुशाला।।७८।


।৭৮।
দুঃখ যাতে ভুলতে পারি কারণ করি পান
পেয়ালা হাতে নিই উঠিয়ে ভাবন অবসান
এই ভুবনে পানরসিক সাধে বা কেউ আশে
মধুশালায় আমিও যাই ওষুধ অভিলাষে।।



।७९।
गिरती जाती है दिन प्रतिदन प्रणयनी प्राणों की हाला
भग्न हुआ जाता दिन प्रतिदन सुभगे मेरा तन प्याला,
रूठ रहा है मुझसे रूपसी, दिन दिन यौवन का साकी
सूख रही है दिन दिन सुन्दरी, मेरी जीवन मधुशाला।।



।৭৯।
দিনকে দিন ফুরিয়ে আসে অনুরাগের সুরা
ভাঙছে রোজ দেহপেয়ালা সতত সুধা ভরা
রূপসী সাকী করছে রাগ বিগতযৌবন
শুকিয়ে আসে মধুশালায় জীবন উপবন।।



।८०।
यम आयेगा साकी बनकर साथ लिए काली हाला,
पी न होश में फिर आएगा सुरा-विसुध यह मतवाला,
यह अंतिम बेहोशी, अंतिम साकी, अंतिम प्याला है,
पथिक, प्यार से पीना इसको फिर न मिलेगी मधुशाला



।৮০।
আসবে যম সাকীর বেশে সঙ্গে কালো সুরা
গতচেতন হবেই হলে মদিরা মাতোয়ারা
অন্ত্যসাকী শেষপেয়ালা শেষের সংবেশ
মধুশালায় পানসোহাগ পথিক জেনো শেষ।।


।८१।
ढलक रही है तन के घट से, संगिनी जब जीवन हाला
पत्र गरल का ले जब अंतिम साकी है आनेवाला,
हाथ स्पर्श भूले प्याले का, स्वाद सुरा जीव्हा भूले
कानो में तुम कहती रहना, मधु का प्याला मधुशाला।।


।৮১।
দেহঘটের থেকে গড়ায় জীবনসাথী সুরা
শেষের সাকী আসলে নিও পত্র বিষে ভরা
ভুলবে হাত পেয়ালা জেনো রসনা রসহারা
ফিসফিসিও মধুশালাই পেয়ালা মধুভরা।।



।८२।
मेरे अधरों पर हो अंतिम वस्तु न तुलसीदल प्याला
मेरी जीव्हा पर हो अंतिम वस्तु न गंगाजल हाला,
मेरे शव के पीछे चलने वालों याद इसे रखना
राम नाम है सत्य न कहना, कहना सच्ची मधुशाला।।


।৮২।
যাবার দিনে চাইনা ঠোঁটে তুলসীপাতা থাক
গঙ্গাজল চাইনা জিভে সরিয়ে দূরে রাখ
অনুগমন করবি যারা বলিস মনে করে
মধুশালাই সত্য সদা রামের নাম নারে।।



।८३।
मेरे शव पर वह रोये, हो जिसके आंसू में हाला
आह भरे वो, जो हो सुरिभत मदिरा पी कर मतवाला,
दे मुझको वो कान्धा जिनके पग मद डगमग होते हों
और जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो मधुशाला।।८३।


।৮৩।
নয়নজলে ঝরলে সুরা কাঁদবে ওরে দুখে
সুরারসিক করবে শোক হারায় যদি চোখে
ওদের কাঁধে উঠবো যারা চলবে টলোমলো
পড়লে চোখ মধুশালায় দহন হবে ভালো।।


।८४।
और चिता पर जाये उंढेला पात्र न घ्रित का, पर प्याला
कंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल हो, पर हाला,
प्राण प्रिये यदि श्राध करो तुम मेरा तो ऐसे करना
पीने वालों को बुलवा कऱ खुलवा देना मधुशाला।।


।৮৪।
পেয়ালা করে চিতায় ঢেল আজ্য নয় সুরা
গলায় বেঁধো আঙুরলতা মদিরা সুধা ভরা
অন্তেষ্টি করতে হলে আমার শেষ কাজ
মধুশালায় পানরসিক সজনী ডেকো আজ।।


।८५।
नाम अगर कोई पूछे तो, कहना बस पीनेवाला
काम ढालना, और ढालना सबको मदिरा का प्याला,
जाति प्रिये, पूछे यदि कोई कह देना दीवानों की
धर्म बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला।।



।৮৫।
শুধোলে কেউ নামটা বোলো রসিক মাতোয়ারা
কাজটা শুধু পেয়ালা ভরা মদিরা বাটোয়ারা
সজনী কেউ শুধোয় যদি রসিক কাকে বলে
মধুশালায় পেয়ালামালা যেজন জপে চলে।।


।८६।
ज्ञात हुआ यम आने को है ले अपनी काली हाला,
पंडित अपनी पोथी भूला, साधू भूल गया माला,
और पुजारी भूला पूजा, ज्ञान सभी ज्ञानी भूला,
किन्तु न भूला मरकर के भी पीनेवाला मधुशाला।।



।৮৬।
যম এবার আসবে নিয়ে অসিত সুরা মধু
পন্ডিতজী ভোলেন পুঁথি জপের মালা সাধু
পূজা ভোলেন পূজারী আর প্রজ্ঞা বিদ্বান
মরেও রসিক মধুশালার মনন করে যান।।


।८७।
यम ले चलता है मुझको तो, चलने दे लेकर हाला,
चलने दे साकी को मेरे साथ लिए कर में प्याला,
स्वर्ग, नरक या जहाँ कहीं भी तेरा जी हो लेकर चल,
ठौर सभी हैं एक तरह के साथ रहे यदि मधुशाला।।



।৮৭।
যম যখন আমায় নেবে রাখিস সাথে সুরা
অনুগমন করবে সাকী পেয়ালা হাতে ভরা
ত্রিভুবনে যেখান খুশি চল তো নিয়ে আগে
এমধুশালা থাকলে পরে একরকম লাগে।।


।८८।
पाप अगर पीना, समदोषी तो तीनों - साकी बाला,
नित्य पिलानेवाला प्याला, पी जानेवाली हाला,
साथ इन्हें भी ले चल मेरे न्याय यही बतलाता है,
कैद जहाँ मैं हूँ, की जाए कैद वहीं पर मधुशाला।।



।৮৮।
পানবিলাস পাপের হলে যেমন দোষী সুরা
পেয়ালারও তেমন দোষ সাকীও দোষভরা
বিচার করে বলছি তাই আমার কারাগার
মধুশালায় পাতুক সব দোষীরা সংসার।।


।८९।
शांत सकी हो अब तक, साकी, पीकर किस उर की ज्वाला,
'और, और' की रटन लगाता जाता हर पीनेवाला,
कितनी इच्छाएँ हर जानेवाला छोड़ यहाँ जाता!
कितने अरमानों की बनकर कब्र खड़ी है मधुशाला।।




।৮৯।
শান্ত সাকী হয়েছ নাকি, মাতাল মনে দাহ
আরও চাই করতে পান মদিরা অহরহ
বাসনা কত হেলায় পড়ে চলছে এই খেলা
কবরে যায় হারিয়ে যায় দেখছে মধুশালা।।



।९०।
जो हाला मैं चाह रहा था, वह न मिली मुझको हाला,
जो प्याला मैं माँग रहा था, वह न मिला मुझको प्याला,
जिस साकी के पीछे मैं था दीवाना, न मिला साकी,
जिसके पीछे था मैं पागल, हा न मिली वह मधुशाला!।९०।



।৯০।
মনঃপূত মদিরা সেই পাইনি আমি খুঁজে
পেয়ালা সেও মনের মত পেলাম কই নিজে
যেই সাকীর ভালবাসায় মজেছিলাম রোজ
মধুশালার সঙ্গে আমি পাইনি তার খোঁজ।।



।९१।
देख रहा हूँ अपने आगे कब से माणिक-सी हाला,
देख रहा हूँ अपने आगे कब से कंचन का प्याला,
'बस अब पाया!'- कह-कह कब से दौड़ रहा इसके पीछे,
किंतु रही है दूर क्षितिज-सी मुझसे मेरी मधुशाला।।


।৯১।
কবে থেকেই সামনে দেখি মাণিক যেন মদ
দেখেছিলাম সোনার মত পেয়ালা ভরা পদ
এইতো সাকী বলেই ছুট দিয়েছি কত পিছে
নাগাল তবু মধুশালার অধরা রয়ে গেছে।।



।९२।
कभी निराशा का तम घिरता, छिप जाता मधु का प्याला,
छिप जाती मदिरा की आभा, छिप जाती साकीबाला,
कभी उजाला आशा करके प्याला फिर चमका जाती,
आँख मिचौली खेल रही है मुझसे मेरी मधुशाला।।


।৯২।
নিরাশা যেই তমসা হয়ে পেয়ালা ঘিরে ধরে
মদিরা সেও হারায় রঙ সাকীও দূরে সরে
আশাকিরণ যখন আসে পেয়ালা ঝলমলে
আমার সাথে মধুশালাও কানামাছি খেলে।



।९३।
'आ आगे' कहकर कर पीछे कर लेती साकीबाला,
होंठ लगाने को कहकर हर बार हटा लेती प्याला,
नहीं मुझे मालूम कहाँ तक यह मुझको ले जाएगी,
बढ़ा बढ़ाकर मुझको आगे, पीछे हटती मधुशाला।।



।৯৩।
'সামনে এসো' বলেই সাকী পেয়ালা নেয় টেনে
আকুল ঠোঁট এগিয়ে এসে নিয়েছে হার মেনে
নেশার টানে সাকীর সাথে অজানা পথ গিয়ে
মধুশালাই যায় যে সরে গোপন আশা নিয়ে।


।९४।
हाथों में आने-आने में, हाय, फिसल जाता प्याला,
अधरों पर आने-आने में हाय, ढुलक जाती हाला,
दुनियावालो, आकर मेरी किस्मत की ख़ूबी देखो,
रह-रह जाती है बस मुझको मिलते-मिलते मधुशाला।।



।৯৪।
পেয়ালা হাতে সবসময়ে  পিছলে কেন যায়
টলমলিয়ে ঠোঁটের কাছে নিয়ত আসে হায়
এই ভুবনে আমার ভাই কপাল পোড়া তাই
আমার সাথে মধুশালার অধরা আশনাই।।



।९५।
प्राप्य नही है तो, हो जाती लुप्त नहीं फिर क्यों हाला,
प्राप्य नही है तो, हो जाता लुप्त नहीं फिर क्यों प्याला,
दूर न इतनी हिम्मत हारुँ, पास न इतनी पा जाऊँ,
व्यर्थ मुझे दौड़ाती मरु में मृगजल बनकर मधुशाला।।


।৯৫।
পাওনা যদি না হয় তবে মদিরা কেন থাকে
পেয়ালাভর থাকেও যদি দূষব কবে কাকে
নিকটে নয় দূরেও নয় দেয় না মোটে ধরা
মধুশালার মরীচিকাও করছে দিশেহারা।।


।९६।
मिले न, पर, ललचा ललचा क्यों आकुल करती है हाला,
मिले न, पर, तरसा तरसाकर क्यों तड़पाता है प्याला,
हाय, नियति की विषम लेखनी मस्तक पर यह खोद गई
'दूर रहेगी मधु की धारा, पास रहेगी मधुशाला!'।


।৯৬।
অভাব তবু লালসা দিয়ে আকুল করে সুরা
পেয়ালা নেই বলেই এত যাতনা বুকে ভরা
নিয়তি এসে ললাটে হায় লিখেছে মন ভরে
মধুশালাই থাকুক কাছে মধুর ধারা দূরে।।


।९७।
मदिरालय में कब से बैठा, पी न सका अब तक हाला,
यत्न सहित भरता हूँ, कोई किंतु उलट देता प्याला,
मानव-बल के आगे निर्बल भाग्य, सुना विद्यालय में,
'भाग्य प्रबल, मानव निर्बल' का पाठ पढ़ाती मधुशाला।।


।৯৭।
বসেই আছি মধুশালায় জোটেনি মদ এসে
পেয়ালা ভরি খুব যতনে উলটে যায় শেষে
পাঠশালায় পড়েছিলাম বরাত সাহসীর
মধুশালায় দেখছি এসে লিখন নিয়তির।।


।९८।
किस्मत में था खाली खप्पर, खोज रहा था मैं प्याला,
ढूँढ़ रहा था मैं मृगनयनी, किस्मत में थी मृगछाला,
किसने अपना भाग्य समझने में मुझसा धोखा खाया,
किस्मत में था अवघट मरघट, ढूँढ़ रहा था मधुशाला।।९८।


।৯৮।
বদনসিবে টুকনি খালি পেয়ালা খুঁজে মরি
এণাক্ষি খুঁজতে গিয়ে অজিন আমি পরি
আমার মত বরাত কার জীবনময় ধাঁধা
মধুশালার মেলেনা খোঁজ দাহঘাটই বাঁধা।।


।९९।
उस प्याले से प्यार मुझे जो दूर हथेली से प्याला,
उस हाला से चाव मुझे जो दूर अधर से है हाला,
प्यार नहीं पा जाने में है, पाने के अरमानों में!
पा जाता तब, हाय, न इतनी प्यारी लगती मधुशाला।।


।৯৯।
সেই পেয়ালা আকাঙ্খিত নাগালে নয় সরে
মন চাইছে সেই মদিরা দূরের থেকে দূরে
ইচ্ছে নিয়ে বাঁচাই ভালো পেলেই সব শেষ
অপ্রাপ্তির মধুশালায় লাগছে আজ বেশ।।


।१००।
साकी के पास है तनिक सी श्री, सुख, संपित की हाला,
सब जग है पीने को आतुर ले ले किस्मत का प्याला,
रेल ठेल कुछ आगे बढ़ते, बहुतेरे दबकर मरते,
जीवन का संघर्ष नहीं है, भीड़ भरी है मधुशाला।।


।১০০।
সাকীর আছে ঈষৎ সুখ, সীমিত সম্পদ
পানপিপাসু উঠিয়ে নাও পেয়ালা কিসমত
জনারণ্যে এগোবে কেউ নয়তো চাপে মরে
জনবহুল মধুশালায় লড়াই থাকে দূরে।।


।१०१।
 साकी, जब है पास तुम्हारे इतनी थोड़ी सी हाला,
क्यों पीने की अभिलषा से, करते सबको मतवाला,
हम पिस पिसकर मरते हैं, तुम छिप छिपकर मुसकाते हो,
हाय, हमारी पीड़ा से है क्रीड़ा करती मधुशाला।।


।১০১।

সাকী যখন হাতের কাছে মদিরা নেই বেশি
পানের আশে মাতাল কেন করছ যত খুশি
পেষাই হলে জীবন কলে হাসছ কেন এত
মধুশালায় দুঃখ নিয়ে বিহার খুশি মত।।


।१०२।
साकी, मर खपकर यदि कोई आगे कर पाया प्याला,
पी पाया केवल दो बूंदों से न अधिक तेरी हाला,
जीवन भर का, हाय, पिरश्रम लूट लिया दो बूंदों ने,
भोले मानव को ठगने के हेतु बनी है मधुशाला।।


।১০২।

মরার পর আমার মুখে পেয়ালা কেউ দিলে
করেছি পান দু'এক ফোঁটা নিয়েছি মুখে তুলে
দু'ফোঁটা সাকী নিয়েছে লুটে খাটনি জীবনের
মধুশালায় শুধুই ঠকা সরল মানুষের।।


।१०३।

जिसने मुझको प्यासा रक्खा बनी रहे वह भी हाला,
जिसने जीवन भर दौड़ाया बना रहे वह भी प्याला,
मतवालों की जिह्वा से हैं कभी निकलते शाप नहीं,
दुखी बनाया जिसने मुझको सुखी रहे वह मधुशाला!।।


।১০ ‌৩।

জীবনভর পিপাসু করে রেখেছে এই মদ
ছুটেছি শুধু মুঠোয় পেতে পেয়ালাময় পদ
শাপমন্যি করিনি আমি হয়েও মাতোয়ালা
হয়েছি দুখী তবুও সুখে থাকুক মধুশালা।।

।१०४।


नहीं चाहता, आगे बढ़कर छीनूँ औरों की हाला,
नहीं चाहता, धक्के देकर, छीनूँ औरों का प्याला,
साकी, मेरी ओर न देखो मुझको तनिक मलाल नहीं,
इतना ही क्या कम आँखों से देख रहा हूँ मधुशाला।।


।১০৪।

অনাসক্ত এগিয়ে গিয়ে মদিরা কেড়ে নিতে
অনাগ্ৰহী ধাক্কা মেরে পেয়ালা নিতে হাতে
বিকারহীন তবুও কেন তাকাও মধুবালা
মহাসিদ্ধি চোখের দেখা দেখছি মধুশালা।।

।१०५।

मद, मदिरा, मधु, हाला सुन-सुन कर ही जब हूँ मतवाला,
क्या गति होगी अधरों के जब नीचे आएगा प्याला,
साकी, मेरे पास न आना मैं पागल हो जाऊँगा,
प्यासा ही मैं मस्त, मुबारक हो तुमको ही मधुशाला।।


।১০৫।

মদিরা মধু নামের গুণে মাতাল করে মতি
মধুপাত্র অধর ছুঁলে কী হবে তার গতি
পাগল হব আমার কাছে আসলে মধুবালা
পিপাসু খুব তোমায় বলি ধন্য মধুশালা।।

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