হরিবংশ রায় বচ্চন
ভাষান্তর: গৌতম চক্রবর্তী
।१०६।
क्या मुझको आवश्यकता है साकी से माँगूँ हाला,
क्या मुझको आवश्यकता है साकी से चाहूँ प्याला,
पीकर मदिरा मस्त हुआ तो प्यार किया क्या मदिरा से!
मैं तो पागल हो उठता हूँ सुन लेता यदि मधुशाला।।
।১০৬।
সাকীর কাছে মদবাসনা আমার নেই বলে
মধুপেয়ালা সাকীর কাছে চাইব কেন ভুলে
মদিরা পানে মাতাল হলে কেমন ভালবাসা
মধুশালার নামেই জাগে পাগল করা নেশা।
।१०७।
देने को जो मुझे कहा था दे न सकी मुझको हाला,
देने को जो मुझे कहा था दे न सका मुझको प्याला,
समझ मनुज की दुर्बलता मैं कहा नहीं कुछ भी करता,
किन्तु स्वयं ही देख मुझे अब शरमा जाती मधुशाला।।
।১০৭।
দেব বলেও পারেনি দিতে মদিরা মদ মধু
সঙ্গে দিতে পেয়ালা কোন অকারণেই শুধু
মানুষী এই দুর্বলতা জেনেও আমি জড়
আমায় দেখে মধুশালাই লজ্জা পায় বড়।।
।१०८।
एक समय संतुष्ट बहुत था पा मैं थोड़ी-सी हाला,
भोला-सा था मेरा साकी, छोटा-सा मेरा प्याला,
छोटे-से इस जग की मेरे स्वर्ग बलाएँ लेता था,
विस्तृत जग में, हाय, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला!।
।১০৮।
এক সময়ে একটু মদে ছিলাম খুশি বেশ
ঊনপেয়ালা সরল মনে করলে সাকী পেশ
ভুবনপুর ছোট হলেও ডাকতো দেবলোকে
মধুশালাই হারিয়ে গেল হায়রে ইহলোকে।।
।१०९।
बहुतेरे मदिरालय देखे, बहुतेरी देखी हाला,
भाँति भाँति का आया मेरे हाथों में मधु का प्याला,
एक एक से बढ़कर, सुन्दर साकी ने सत्कार किया,
जँची न आँखों में, पर, कोई पहली जैसी मधुशाला।।
।১০৯।
দেখেছি কত মদিরালয় তরবেতর সুরা
হয়েছে বহু মধুপেয়ালা করকমলে ধরা
মনোহরণ সাকীরা সব ডাকছে এসে কাছে
মধুশালার রূপটি যেন আগের মত আছে।।
।११०।
एक समय छलका करती थी मेरे अधरों पर हाला,
एक समय झूमा करता था मेरे हाथों पर प्याला,
एक समय पीनेवाले, साकी आलिंगन करते थे,
आज बनी हूँ निर्जन मरघट, एक समय थी मधुशाला।।
।১১০।
এক সময়ে আমার ঠোঁটে ছলকে যেত মদ
করকমলে নাচতো সুখে পেয়ালাভরা পদ
মধুবালার বুকের মাঝে রসিক মাতোয়ালা
আজকে আমি মশানঘাট তখন মধুশালা।।
।१११।
जला हृदय की भट्टी खींची मैंने आँसू की हाला,
छलछल छलका करता इससे पल पल पलकों का प्याला,
आँखें आज बनी हैं साकी, गाल गुलाबी पी होते,
कहो न विरही मुझको, मैं हूँ चलती फिरती मधुशाला!।
।১১১।
পোড়া মনের ভাটিখানায় নয়নজল সুরা
পলক পড়ে পেয়ালা যেন ছলাৎছল করা
কপোল আজ হয়েছে লাল নয়ন মধুবালা
বিরহী নই আমায় জেনো বহতা মধুশালা।।
।११२।
कितनी जल्दी रंग बदलती है अपना चंचल हाला,
कितनी जल्दी घिसने लगता हाथों में आकर प्याला,
कितनी जल्दी साकी का आकर्षण घटने लगता है,
प्रात नहीं थी वैसी, जैसी रात लगी थी मधुशाला।।
।১১২।
জলদি রং বদলে ফেলে চপল নিজ সুরা
মধুপেয়ালা পুলক হাতে হারিয়ে যায় ত্বরা
মুহূর্তেকে হারায় চোখে রসিক মধুবালা
দিনের চেয়ে সজীবতর রাতের মধুশালা।।
।११३।
बूँद बूँद के हेतु कभी तुझको तरसाएगी हाला,
कभी हाथ से छिन जाएगा तेरा यह मादक प्याला,
पीनेवाले, साकी की मीठी बातों में मत आना,
मेरे भी गुण यों ही गाती एक दिवस थी मधुशाला।।
।১১৩।
সময় কালে সুরাবিন্দু কাতর হবে মন
পেয়ালাভরা মাদক মধু হারিয়ে অকারণ
পানবিলাসী কান দিও না বলুক মধুবালা
এক সময় আমার গুণ গাইতো মধুশালা।।
।११४।
छोड़ा मैंने पथ मतों को तब कहलाया मतवाला,
चली सुरा मेरा पग धोने तोड़ा जब मैंने प्याला,
अब मानी मधुशाला मेरे पीछे पीछे फिरती है,
क्या कारण? अब छोड़ दिया है मैंने जाना मधुशाला।।
।১১৪।
পানাসক্ত নাম হয়েছে মতের পথে নেই
সুরাস্রোত চরণতলে পেয়ালা ভাঙি যেই
অনুগমন মধুশালার নিয়েছি মেনে মনে
যদিও আজ অনাসক্ত মধুশালার টানে।।
।११५।
यह न समझना, पिया हलाहल मैंने, जब न मिली हाला,
तब मैंने खप्पर अपनाया ले सकता था जब प्याला,
जले हृदय को और जलाना सूझा, मैंने मरघट को
अपनाया जब इन चरणों में लोट रही थी मधुशाला।।
।১১৫।
গরল পান করিনি আমি অভাব হলে সুরা
পেয়ালাহীন আপন করে নিইনি কোন সরা
পোড়ামনের দহন চেয়ে মশানে আজ ঘর
প্রনিপাত মধুশালার তবুও আজ পর।।
।११६।
कितनी आई और गई पी इस मदिरालय में हाला,
टूट चुकी अब तक कितने ही मादक प्यालों की माला,
कितने साकी अपना अपना काम खतम कर दूर गए,
कितने पीनेवाले आए, किन्तु वही है मधुशाला।।
।১১৬।
কত না লোক পান করলো মধুশালায় সুরা
পেয়ালা কত ভাঙলো পড়ে মাদক মধু ভরা
কর্মশেষে সরলো দূরে অনেক মধুবালা
বদলে গেল পানবিলাসী অজর মধুশালা।।
।११७।
कितने होठों को रक्खेगी याद भला मादक हाला,
कितने हाथों को रक्खेगा याद भला पागल प्याला,
कितनी शक्लों को रक्खेगा याद भला भोला साकी,
कितने पीनेवालों में है एक अकेली मधुशाला।।
।১১৭।
কত না ঠোঁট রাখবে মনে মাদক মধু রাত
পেয়ালা কত রাখবে মনে পাগল করা হাত
চেহারা কত রাখবে মনে সরল মধুবালা
বিরল সুরা রসিক মনে একলা মধুশালা।।
।११८।
दर दर घूम रहा था जब मैं चिल्लाता - हाला! हाला!
मुझे न मिलता था मदिरालय, मुझे न मिलता था प्याला,
मिलन हुआ, पर नहीं मिलनसुख लिखा हुआ था किस्मत में,
मैं अब जमकर बैठ गया हूँ, घूम रही है मधुशाला।।
।১১৮।
হরেক দোরে ঘুরেছিলাম হেঁকেছিলাম সুরা
মিলেছে কই মদিরালয়, পেয়ালা মধু ভরা
মিলন হল, হল না সুখ, বিধির এই খেলা
আয়েশ করে এখন থিতু, ঘুরছে মধুশালা।।
।११९।
मैं मदिरालय के अंदर हूँ, मेरे हाथों में प्याला,
प्याले में मदिरालय बिंबित करनेवाली है हाला,
इस उधेड़-बुन में ही मेरा सारा जीवन बीत गया -
मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला!।
।১১৯।
মদিরালয়ে আসীন হাতে পেয়ালা মধু ভরা
সুরার মাঝে মধুশালার পড়ছে ছবি ধরা
ভেবেই শুধু সারা জীবন কেটেছে কত শীত
মধুশালার ভেতর আমি কিংবা বিপরীত।।
।१२०।
किसे नहीं पीने से नाता, किसे नहीं भाता प्याला,
इस जगती के मदिरालय में तरह-तरह की है हाला,
अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार सभी पी मदमाते,
एक सभी का मादक साकी, एक सभी की मधुशाला।।
।১২০।
পানবিলাসে নাড়ির টান, মধুপেয়ালা পদ
ভুবনপুরে মধুশালায় কতরকম মদ
নিজের মত মদখেয়ালে সবাই ওঠে মেতে
মাদক সাকী মধুশালাও সবাই আসে পেতে।।
।१२१।
वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर की ज्वाला,
जिसमें मैं बिंबित-प्रतिबिंबित प्रतिपल, वह मेरा प्याला,
मधुशाला वह नहीं जहाँ पर मदिरा बेची जाती है,
भेंट जहाँ मस्ती की मिलती मेरी तो वह मधुशाला।।
।১২১।
মনের দাহ শান্ত করে মদিরা মধু সুরা
মধুভান্ডে আমার ছবি পড়ছে সদা ধরা
পণন সুরা হলেই শুধু নয় তো মধুশালা
থাকতে হবে মধুবাতাস মধুর সারা বেলা।।
।१२२।
मतवालापन हाला से ले मैंने तज दी है हाला,
पागलपन लेकर प्याले से, मैंने त्याग दिया प्याला,
साकी से मिल, साकी में मिल अपनापन मैं भूल गया,
मिल मधुशाला की मधुता में भूल गया मैं मधुशाला।।
।১২২।
মাতাল আমি চাইনা হতে হয়েছি সুরাহারা
হাতপেয়ালা ছেড়েছি কবে উন্মাদনা ছাড়া
সাকীসঙ্গে গেলাম হয়ে আপনহারা ভোলা
মদিরা পেয়ে অন্ধ ভুলে আমিই মধুশালা।।
।१२३।
मदिरालय के द्वार ठोंकता किस्मत का छूंछा प्याला,
गहरी, ठंडी सांसें भर भर कहता था हर मतवाला,
कितनी थोड़ी सी यौवन की हाला, हा, मैं पी पाया!
बंद हो गई कितनी जल्दी मेरी जीवन मधुशाला।।
।১২৩।
অদৃষ্টের পেয়ালা খালি ঠকঠকিয়ে দোরে
শীতলবায় বুক ভরিয়ে মাতাল পান করে
হয়েছে পান একটু মোটে তারুণ্যের সুরা
মধুশালায় বাঁধন দোরে হয়েছে মধুহারা।।
।१२४।
कहाँ गया वह स्वर्गिक साकी, कहाँ गयी सुरिभत हाला,
कहाँ गया स्वपिनल मदिरालय, कहाँ गया स्वर्णिम प्याला!
पीनेवालों ने मदिरा का मूल्य, हाय, कब पहचाना?
फूट चुका जब मधु का प्याला, टूट चुकी जब मधुशाला।।
।১২৪।
কোথায় গেল সুরাসুবাস দেবীতুল্য সাকী
মদিরালয় মধুভান্ড চোখকে দিয়ে ফাঁকি
এই জীবনে মধুর দাম বুঝবে মাতোয়ালা
মধুপেয়ালা পড়লে ভেঙে লুপ্ত মধুশালা।।
।१२५।
अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला,
अपने युग में सबको अदभुत ज्ञात हुआ अपना प्याला,
फिर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उत्तर पाया -
अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला!।
।১২৫।
আপনকালে নিজের সুরা সবচাইতে ভালো
রহস্যময় পেয়ালাতেও মনোহরণ আলো
তবুও যদি শুধোও কোন মরমী মাতোয়ালা
শুনতে হবে রসিক কই কোথায় মধুশালা।।
।१२६।
'मय' को करके शुद्ध दिया अब नाम गया उसको, 'हाला'
'मीना' को 'मधुपात्र' दिया 'सागर' को नाम गया 'प्याला',
क्यों न मौलवी चौंकें, बिचकें तिलक-त्रिपुंडी पंडित जी
'मय-महिफल' अब अपना ली है मैंने करके 'मधुशाला'।।
।১২৬।
আঙুর রস শোধন করে হয়েছে নাম সুরা
সাগর হলো পেয়ালা মীনা আধার মধুভরা
মৌলবীতো চমকে যাবে সঙ্গে টীকাধারী
মধুশালায় আপন হয়ে মিশলে মধুবারি।।
।१२७।
कितने मर्म जता जाती है बार-बार आकर हाला,
कितने भेद बता जाता है बार-बार आकर प्याला,
कितने अर्थों को संकेतों से बतला जाता साकी,
फिर भी पीनेवालों को है एक पहेली मधुशाला।।
।১২৭।
বারংবার মদিরা এসে বোঝায় সুরা সার
মধুপেয়ালা ব্যাখ্যা করে ব্যঞ্জনা কী তার
কতরকম ব্যাখ্যা দিয়ে বোঝায় মধুবালা
পানরসিক তবুও ভাবে হেঁয়ালি মধুশালা।।
।१२८।
जितनी दिल की गहराई हो उतना गहरा है प्याला,
जितनी मन की मादकता हो उतनी मादक है हाला,
जितनी उर की भावुकता हो उतना सुन्दर साकी है,
जितना हो जो रिसक, उसे है उतनी रसमय मधुशाला।।
।১২৮।
মনের মত অবগাহন পেয়ালা হাতে নিলে
মনের মত মাদক মধু সুরায় খুঁজে মেলে
মন যেমন ভাবে তেমন ললিতা মধুবালা
মনের তাপে উথলে যায় রসের মধুশালা।।
।१२९।
जिन अधरों को छुए, बना दे मस्त उन्हें मेरी हाला,
जिस कर को छू दे, कर दे विक्षिप्त उसे मेरा प्याला,
आँख चार हों जिसकी मेरे साकी से दीवाना हो,
पागल बनकर नाचे वह जो आए मेरी मधुशाला।।
।১২৯।
মদিরা তুমি অধর ছুঁয়ে জাগালে পাগলামি
মধুপেয়ালা হাতকে ছুঁলে কেমন করে থামি
ভালবাসায় মাতাল চোখে হারায় মধুবালা
মগন হয়ে নাচেন যিনি আসেন মধুশালা।।
।१३०।
हर जिव्हा पर देखी जाएगी मेरी मादक हाला
हर कर में देखा जाएगा मेरे साकी का प्याला
हर घर में चर्चा अब होगी मेरे मधुविक्रेता की
हर आंगन में गमक उठेगी मेरी सुरिभत मधुशाला।।
।১৩০।
রসনা সব সিক্ত দেখি মাদক মধু মদে
করসকল ভরেছে সাকী মধুপেয়ালা পদে
সকল ঘরে চর্চা এখন জমিয়ে মধুবালা
আঙিনাময় গমগমিয়ে সুবাসী মধুশালা।।
।१३१।
मेरी हाला में सबने पाई अपनी-अपनी हाला,
मेरे प्याले में सबने पाया अपना-अपना प्याला,
मेरे साकी में सबने अपना प्यारा साकी देखा,
जिसकी जैसी रुचि थी उसने वैसी देखी मधुशाला।।
।১৩১।
আমার মদে সবাই পেল আকুল করা মদ
হাতপেয়ালা ধরিয়ে দিতে আপন হল পদ
আমার সাকী আপনজন সবার মধুবালা
রূচি যেমন চোখে তেমন অবার মধুশালা।।
।१३२।
यह मदिरालय के आँसू हैं, नहीं-नहीं मादक हाला,
यह मदिरालय की आँखें हैं, नहीं-नहीं मधु का प्याला,
किसी समय की सुखदस्मृति है साकी बनकर नाच रही,
नहीं-नहीं कवि का हृदयांगण, यह विरहाकुल मधुशाला।।
।১৩২।
মাদক নয় চোখের জল মধুশালার সুরা
মধুপেয়ালা চোখের মত নয়ননীরে ভরা
অতীত কথা নাচছে মনে ভাসছে মধুবালা
আঙিনা নয় কবিমনের বিরহী মধুশালা।।
।१३३।
कुचल हसरतें कितनी अपनी, हाय, बना पाया हाला,
कितने अरमानों को करके ख़ाक बना पाया प्याला!
पी पीनेवाले चल देंगे, हाय, न कोई जानेगा,
कितने मन के महल ढहे तब खड़ी हुई यह मधुशाला!।
।১৩৩।
বাসনা কত দলন করে বানিয়ে সুরা বেশ
পেয়ালা গড়ে আশাযাপন করেছি নিঃশেষ
পানের পরে অচিনপথে হারায় মাতোয়ালা
আমার মনের খন্ডহরে দাঁড়িয়ে মধুশালা।।
।१३४।
विश्व तुम्हारे विषमय जीवन में ला पाएगी हाला
यदि थोड़ी-सी भी यह मेरी मदमाती साकीबाला,
शून्य तुम्हारी घड़ियाँ कुछ भी यदि यह गुंजित कर पाई,
जन्म सफल समझेगी जग में अपना मेरी मधुशाला।।
।১৩৪।
এই ভুবনে হেয় জীবনে একচুমুক সুরা
পেতাম যদি মনমাতাল সাকীর হাতে ধরা
গুনগুনিয়ে উঠত গেয়ে অবসরের বেলা
সফল হত ভুবনে এই জীবন মধুশালা।।
।१३५।
बड़े-बड़े नाज़ों से मैंने पाली है साकीबाला,
कलित कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला,
मान-दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को,
विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला।।
।১৩৫।
মধুবালাকে করেছি বড় গরবে ভালবেসে
কল্পনার মধুপেয়ালা ধরেছে সদা হেসে
যতনে অতি সকলে রেখ কোমল মধুবালা
ভুবন আজ করকমলে দিলাম মধুশালা।।